सरे-शाम वक़्त की मुंडेर पर शाम चढ़ कर बैठ जाती है
पाँव लटकाए सुबह के सूरज से मिलती है, रात के चाँद से मिलती है
कोई कह दे फ़लक से जा कर समझाए, देर तक पाँव लटके रहें तो सूज जाते हैं
टुकड़े -टुकड़े में चटके हुए चाँद को वक़्त ने मशआल की तरह जला दिया है
रोज़ यूँ ही झीलों पर जलता रहता है
वक़्त को कोई कह दे कभी- कभी मशआल की लौ बुझा दिया करे
वरना मुसल्लत लौ से घिरे पानी के बर्तन सूख जाते हैं
रोज़ रात को आँखों में नींद के आने का वादा रहता है लम्बी साअत के दोस्तों की तरह
जो आने के वादे पर कभी आ नहीं पाते.......
ऐसे ही वक़्त पर नींद नहीं आती
ख़्वाबों से मिले इक सदी जैसा वक़्त हुआ हो ............... अब बिना चश्मा लगाये पढना सीखना पढ़ेगा, पढ़ते-पढ़ते बेवक्त की नींद में चश्मे के कांच से टकरा कर ख्वाब लौट जाते हैं
शाम ,चाँद और ये नींद बेवजह ही खुद पर ज़ुल्म किये जाते हैं
पाँव लटकाए सुबह के सूरज से मिलती है, रात के चाँद से मिलती है
कोई कह दे फ़लक से जा कर समझाए, देर तक पाँव लटके रहें तो सूज जाते हैं
टुकड़े -टुकड़े में चटके हुए चाँद को वक़्त ने मशआल की तरह जला दिया है
रोज़ यूँ ही झीलों पर जलता रहता है
वक़्त को कोई कह दे कभी- कभी मशआल की लौ बुझा दिया करे
वरना मुसल्लत लौ से घिरे पानी के बर्तन सूख जाते हैं
रोज़ रात को आँखों में नींद के आने का वादा रहता है लम्बी साअत के दोस्तों की तरह
जो आने के वादे पर कभी आ नहीं पाते.......
ऐसे ही वक़्त पर नींद नहीं आती
ख़्वाबों से मिले इक सदी जैसा वक़्त हुआ हो ............... अब बिना चश्मा लगाये पढना सीखना पढ़ेगा, पढ़ते-पढ़ते बेवक्त की नींद में चश्मे के कांच से टकरा कर ख्वाब लौट जाते हैं
शाम ,चाँद और ये नींद बेवजह ही खुद पर ज़ुल्म किये जाते हैं