सुनो कि....
ये रेज़ा-रेज़ा ग़म
कुछ यूँ मिला लिया है मैंने क़तरा-क़तरा लहू में .....
कि अब सब गहरे लाल रंग का है...
सुनो कि....
वो बस्तियाँ सब रिफ़ाकतों की,जो पिछले कई हादसों में खंडहर हो गयीं थीं ....
उन्हीं के किसी मोड़ पै इक सब्ज़ा गुलमोहर का लहलहा रहा है इन दिनों....
यूँ लगता है शायद अबके कुछ सालों में परिंदे भी आ जायें....
सुनो कि....
वो सब लिबास,क़बाऐं जो फूलों ने उतार दिए थे पिछले बरस...
सब के सब अबकी बरसात में ज़मीं ने पानी के साथ जज़्ब कर लिए हैं ....
ये रेज़ा-रेज़ा ग़म
कुछ यूँ मिला लिया है मैंने क़तरा-क़तरा लहू में .....
कि अब सब गहरे लाल रंग का है...
सुनो कि....
वो बस्तियाँ सब रिफ़ाकतों की,जो पिछले कई हादसों में खंडहर हो गयीं थीं ....
उन्हीं के किसी मोड़ पै इक सब्ज़ा गुलमोहर का लहलहा रहा है इन दिनों....
यूँ लगता है शायद अबके कुछ सालों में परिंदे भी आ जायें....
सुनो कि....
वो सब लिबास,क़बाऐं जो फूलों ने उतार दिए थे पिछले बरस...
सब के सब अबकी बरसात में ज़मीं ने पानी के साथ जज़्ब कर लिए हैं ....
महक मिट्टी की अबके दूर तक फैलेगी...
सुनो कि....
वो सब लम्स,दस्तकें जो दरवाज़ों से चिपकी पड़ीं हैं यहाँ ,जो सुनाई नहीं पड़तीं...
लगातार सुनने की कोशिश में हूँ,कि घड़ी भर सीने में रुके धड़कन,तो सुन पाऊँ भी...
सुनो कि....
गुज़रे सालों में ये जो बहुत वजन बढ़ा लिया है तुमने..
कि अलग-अलग नाप के तुम्हारे लिबास...
यूँ अब पहली शब के चाँद से लेकर चौदहवीं शब के चाँद को दुरुस्त बैठ जाते हैं...
सुनो कि....
ये सब सुनने के लिए शुक्रिया!!!!
सुनो कि....
वो सब लम्स,दस्तकें जो दरवाज़ों से चिपकी पड़ीं हैं यहाँ ,जो सुनाई नहीं पड़तीं...
लगातार सुनने की कोशिश में हूँ,कि घड़ी भर सीने में रुके धड़कन,तो सुन पाऊँ भी...
सुनो कि....
गुज़रे सालों में ये जो बहुत वजन बढ़ा लिया है तुमने..
कि अलग-अलग नाप के तुम्हारे लिबास...
यूँ अब पहली शब के चाँद से लेकर चौदहवीं शब के चाँद को दुरुस्त बैठ जाते हैं...
सुनो कि....
ये सब सुनने के लिए शुक्रिया!!!!