Tuesday, January 29, 2013

मैं दिल्ली हूँ ........ 2

ये रेगज़ार है अहले सियासत का
कहीं हरा-भरा दीख सकता न
हीं
ये ढूह-टीले हैं ख़ाकी के
ये बागीचे
हैं नागफनी के
ये रास्ते जाते
हैं शतरंज के मोहरों को
ये देखते न
हीं एक घड़ी भी मजलूमों के चेहरों को
ये हाकिम है इस शहर के
ये बादशाह
हैं इस दहर के
यहाँ जिस्म बचाये रखना
यहाँ साँस छुपाये रखना
तुम ख़ुद में जीने का हौसला बचाये रखना
फ़िरऔनों के शहर
में जज़्बा बचाये रखना
आगे है राह बड़ी कठिन जीने की
ये सीढ़ी है दिल्ली के ज़ीने की


मैं दिल्ली हूँ......

मैं दिल्ली हूँ......
कि....
रंग है मेरे रुख़सारों पर
और पाँव हैं अंगा
रों पर
यहाँ चमन महकते
हैं गुलाबों के
और नश्तर
हैं हाथों में बागबानों के
यहाँ रौशनी यूँ कि कहकशाँ सी रात हो
और नींद है वहशतों के बिस्तरों पर
यहाँ खंडहर
हैं औलियों पर पीरों पर
और जगमगाते महल
हैं दाग़दारों पर
यहाँ ज़मीं सब्ज़ सब खूं गर्क है
और मर्ग तारी है बहा
रों पर
यहाँ चलती है स्याही की है हल्ला बोल अँधेरे का
और पहरेदारियाँ
हैं सूरज और मशालों पर


मैं दिल्ली हूँ......
कि....
सुनते
हैं कि मैं तीसरी दुनिया हूँ।।।।