मैं दिल्ली हूँ......
कि....
रंग है मेरे रुख़सारों पर
और पाँव हैं अंगारों पर
यहाँ चमन महकते हैं गुलाबों के
और नश्तर हैं हाथों में बागबानों के
यहाँ रौशनी यूँ कि कहकशाँ सी रात हो
और नींद है वहशतों के बिस्तरों पर
यहाँ खंडहर हैं औलियों पर पीरों पर
और जगमगाते महल हैं दाग़दारों पर
यहाँ ज़मीं सब्ज़ सब खूं गर्क है
और मर्ग तारी है बहारों पर
यहाँ चलती है स्याही की है हल्ला बोल अँधेरे का
और पहरेदारियाँ हैं सूरज और मशालों पर
मैं दिल्ली हूँ......
कि....
सुनते हैं कि मैं तीसरी दुनिया हूँ।।।।
कि....
रंग है मेरे रुख़सारों पर
और पाँव हैं अंगारों पर
यहाँ चमन महकते हैं गुलाबों के
और नश्तर हैं हाथों में बागबानों के
यहाँ रौशनी यूँ कि कहकशाँ सी रात हो
और नींद है वहशतों के बिस्तरों पर
यहाँ खंडहर हैं औलियों पर पीरों पर
और जगमगाते महल हैं दाग़दारों पर
यहाँ ज़मीं सब्ज़ सब खूं गर्क है
और मर्ग तारी है बहारों पर
यहाँ चलती है स्याही की है हल्ला बोल अँधेरे का
और पहरेदारियाँ हैं सूरज और मशालों पर
मैं दिल्ली हूँ......
कि....
सुनते हैं कि मैं तीसरी दुनिया हूँ।।।।
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