Saturday, July 30, 2011

शाम से निगाह

शाम से निगाह तर लिबास खड़ी है 
तुम्हारी किसी खिड़की के सहारे मेरी रात खड़ी है 

आसमाँ के उस कोने पर चाँदनी खिल रही है
भेज दो घर उसे कि शाम ढल रही है 

हर सफ़र मकामों को किनारे रखते गये
अब शहर से कैसे पूछें , जो घर जाये वो कौन सी गली है

दरिया की उस मौज को भी शायद पानी की तलब थी 
बादलों के सूखने की शायद समंदर को भी खबर थी 

शाम से निगाह तर लिबास खड़ी है 
तुम्हारी किसी खिड़की के सहारे मेरी रात खड़ी है

Friday, July 22, 2011

ग़ज़ल


भेजे हैं आज एक अग्यार ने गुलाब हमें
ख़ुदा जाने अब मिले कौन सा अजाब हमें

बुलाते ही नहीं हैं वो महफ़िलों में हमको
जो कभी कहते थे रौनक-ए-बज़्म हमें

वही आजकल खुशबुओं का पता ढूंढ़ते हैं
जो कहते थे प्यार से शहर-ए-बहार हमें

कभी जिनको थी शिद्दत से आरज़ू हमारी
सुना है वही गिनते हैं अब दुश्मनों में हमें

उन्हें क्या कहें इस ख़ता, इस धूप के लिये
ख़त्म हो जायेंगे सब पेड़ इस सफ़र में क्या पता था हमें

भेजे हैं आज एक अग्यार ने गुलाब हमें
ख़ुदा जाने अब मिले कौन सा अजाब हमें

Thursday, July 7, 2011

कोई खुशबू ना बदन ना कोई साया था
वो जो खाब था पैराहन पहन के आया था
धुआँ ना धुंध ना अब्र का टुकडा कोई
कल की रात चाँद आँख बंद करके आया था
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आहटेँ लाशक्ल ही हसीन हैँ
हर आहट गर शक्ल मेँ तब्दील हो
तो तेरे इंतज़ार मेँ क्या बात रह जाये
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धूप मेँ पिघल जाती हैँ आरजुऐँ
छाँव के लिये घर मेँ दरख़्त रखना
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चाँद, सितारे, आफ़ताब क्या भरोसा कब बुझ जायेँ
उजाले के लिये घर मेँ तुम एक शम्मा जलती रखना
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न हसीन कोहसारोँ से
न खूबसूरत आबशारोँ से
ये रात बदलती है करवटेँ
आपकी आँख के इशारोँ से
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सुना था रात के उस मोड़ पर बैठ कर चाँद बरसोँ बरस ख़ाब बेचता था
वफ़ा,रंज ओ गम,वस्ल-ओ- जुदाई बेचता था
सुना है रात के उस मोड़ पर अब एक टूटा मकान है
उजड़ा दयार है वहाँ, जहाँ कभी चाँद रहा करता था
सुना है ये भी कि बड़ी मुफ़लिसी मेँ वक़्त कटा था उसका
कि सितारोँ की ईटोँ पर टूटा पलंग टिका था उसका
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चेहरा ज़हीन रखना लब पै गुलाब रखना
पलकोँ से मिलते हैँ ख़ाब कितने सबका हिसाब रखना
 
खुले तो आसपास शुआओँ से बिखर गये
एक सदी से जो बंद कर रखे थे खतों में अर्मान आपने
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सफेद कैनवास पर रात सिर्फ आपके लबोँ के निशान थे
सुबह तलक सारी कायनात ही कैनवास पर आ गयी
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इक बेलिबास सी आरज़ू दर्द लपेटे फिरती है

शब भर जला सितारोँ का शहर
रात अब ख़ाक समेटे फिरती है
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उससे न गिला करो न कोई शिकवा रखो
वो खुदा है उसे सिर्फ खुदा रखो
मत मिलाओ उसे इंसाँ मेँ उसमे मिलावट आ जायेगी
वो अभी साफ़ है उसे साफ़ ही रखो
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हर रंजिश निगाह की धूप सी
हर आँसू निगाह के सुकून सा