शाम से निगाह तर लिबास खड़ी है
तुम्हारी किसी खिड़की के सहारे मेरी रात खड़ी है
आसमाँ के उस कोने पर चाँदनी खिल रही है
भेज दो घर उसे कि शाम ढल रही है
हर सफ़र मकामों को किनारे रखते गये
अब शहर से कैसे पूछें , जो घर जाये वो कौन सी गली है
दरिया की उस मौज को भी शायद पानी की तलब थी
बादलों के सूखने की शायद समंदर को भी खबर थी
शाम से निगाह तर लिबास खड़ी है
तुम्हारी किसी खिड़की के सहारे मेरी रात खड़ी है