भेजे हैं आज एक अग्यार ने गुलाब हमें
ख़ुदा जाने अब मिले कौन सा अजाब हमें
बुलाते ही नहीं हैं वो महफ़िलों में हमको
जो कभी कहते थे रौनक-ए-बज़्म हमें
वही आजकल खुशबुओं का पता ढूंढ़ते हैं
जो कहते थे प्यार से शहर-ए-बहार हमें
कभी जिनको थी शिद्दत से आरज़ू हमारी
सुना है वही गिनते हैं अब दुश्मनों में हमें
उन्हें क्या कहें इस ख़ता, इस धूप के लिये
ख़त्म हो जायेंगे सब पेड़ इस सफ़र में क्या पता था हमें
भेजे हैं आज एक अग्यार ने गुलाब हमें
ख़ुदा जाने अब मिले कौन सा अजाब हमें
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