Saturday, July 30, 2011

शाम से निगाह

शाम से निगाह तर लिबास खड़ी है 
तुम्हारी किसी खिड़की के सहारे मेरी रात खड़ी है 

आसमाँ के उस कोने पर चाँदनी खिल रही है
भेज दो घर उसे कि शाम ढल रही है 

हर सफ़र मकामों को किनारे रखते गये
अब शहर से कैसे पूछें , जो घर जाये वो कौन सी गली है

दरिया की उस मौज को भी शायद पानी की तलब थी 
बादलों के सूखने की शायद समंदर को भी खबर थी 

शाम से निगाह तर लिबास खड़ी है 
तुम्हारी किसी खिड़की के सहारे मेरी रात खड़ी है

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