Monday, October 3, 2011

पलकों के चेहरे

पलकों के चेहरे पढ़ना बड़ा मुश्किल है 
हर बदलते ख़्वाब के साथ इनकी तस्वीर बदल जाती है 

धूप में परछाइयों को समेट लो जिस्मों में 
छाँव में इनकी तहरीर बदल जाती है 

रात और चाँद के भी अजब रिश्ते हैं 
चाँद के साथ साथ रातों की भी तासीर बदल जाती हैं

दिल-ओ-जाँ लोगों के हवाले यूँ न करो 
बदलते वक़्त के साथ इनकी निगाहें भी बदल जाती हैं

इक बेलिबास सी आरज़ू

इक बेलिबास सी आरज़ू
दर्द लपेटे फिरती है

शब भर जला सितारों का शहर 
रात अब ख़ाक समेटे फिरती है

राहों में खामोशियाँ कभी बोलती थी
अब तन्हाईयाँ  चीखती फिरती हैं