ये सारे उजाले के धुएं
तुम ने अपनी पलकों से क्यूँ पोछें हैं
ये वक़्त की पीठ पर जो भी थे निशाँ
तुम ने अपने हाथों से क्यूँ पोछें हैं
दरिया की तरह हो आड़े टेढ़े जिनके जवाब
ऐसे सारे सावल तुमने मुझसे ही क्यूँ पूछे हैं
तुम ने अपनी पलकों से क्यूँ पोछें हैं
ये वक़्त की पीठ पर जो भी थे निशाँ
तुम ने अपने हाथों से क्यूँ पोछें हैं
दरिया की तरह हो आड़े टेढ़े जिनके जवाब
ऐसे सारे सावल तुमने मुझसे ही क्यूँ पूछे हैं
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