Thursday, June 21, 2012

तेरा ग़म....

तेरा ग़म....
तस्बीह के दाने सा सो आँख से गिरने न दिया
सुना है वो समन्दरोँ के भी हिसाब रखता है
इसी वास्ते दरपेश खुदा के ये सैलाब रख दिया

वो रोज़ मिलता है

वो रोज़ मिलता है हमसे
पर शायद अब उससे कोई पहचान नहीँ

उसी शिद्दत से देखे है वो आज भी
पर शायद उसके सीने मेँ अब वो ईमान नहीँ

बड़ा फ़रिश्तोँ सा हुआ जाता है वो जमाने को
पर शायद उसमेँ अब कहीँ कोई इंसान नहीँ।।।

इस तन्हाई मेँ ये कौन है

इस तन्हाई मेँ ये कौन है जो चला आता है शमादान लिये यादोँ के
हम तो सालोँ पहले तर्को ताल्लुक करके चले थे ये कौन ख़ुदा है जो खैँचता है दामन दायरोँ मेँ वादोँ के
ये फ़ाख़्ता भले ही पर शिकस्ता हो प बैठी है कोहसारोँ पर इरादोँ के...