वो रोज़ मिलता है हमसे
पर शायद अब उससे कोई पहचान नहीँ
उसी शिद्दत से देखे है वो आज भी
पर शायद उसके सीने मेँ अब वो ईमान नहीँ
बड़ा फ़रिश्तोँ सा हुआ जाता है वो जमाने को
पर शायद उसमेँ अब कहीँ कोई इंसान नहीँ।।।
पर शायद अब उससे कोई पहचान नहीँ
उसी शिद्दत से देखे है वो आज भी
पर शायद उसके सीने मेँ अब वो ईमान नहीँ
बड़ा फ़रिश्तोँ सा हुआ जाता है वो जमाने को
पर शायद उसमेँ अब कहीँ कोई इंसान नहीँ।।।
No comments:
Post a Comment