Wednesday, July 25, 2012

नज्मे-साक़िब आसमाँ से बड़ा फ़र्द गुज़रेगा

उठाये ले जाते हो मुझे दर-ए-तन्हाई से
देखना हमपे अगला ज़माना यहाँ बड़ा सर्द गुज़रेगा

किसी के पाँव का एक भी निशाँ नहीँ यहाँ
देखना कोई आबला पा इसी शहर से लिये दर्द गुज़रेगा

खिज़ाँ के तौर-तरीके कभी बदलते नहीँ
देखना इस बार भी हवा के साथ बड़ा गर्द गुज़रेगा

सजाये रह जाओगे तुम इधर महफ़िल-ए-अंजुम
देखना उधर नज्मे-साक़िब आसमाँ से बड़ा फ़र्द गुज़रेगा

Thursday, July 12, 2012

मैं तो जुगनू हूँ

मैं तो जुगनू हूँ घड़ी भर चमकूँगा फिर बुझ जाऊँगा
तुम तो खुर्शीद हो नकाबों में ख़ुद को छुपाओगे कब तक

चमन है ये खिंज़ाअफज़ाई पुराना दस्तूर है इसका
तुम इस गुलाब को ज़र्द होने से बचाओगे  कब तक

जिधर देखिये यहाँ रंज-ओ -मुसीबत है उस ओर
तुम मीर-ओ -ग़ालिब के दीवान से ख़ुद को बहलाओगे  कब तक

वो तो बड़ा  ख़ुदापरस्त है अंधेरों में भी सब को पहचान लेता है
तुम उजालों में उससे खुद को छुपओगे  कब तक

ज़रा-ज़रा सी बात पर उसकी आँख भर आती है
तुम नाराज़गी में उससे नज़र मिलाओगे  कब तक

Saturday, July 7, 2012

ताजमहल...

ताजमहल...
कहने भर को तो नाम शाहजहाँ का था
असल मेँ वो काशाना तो किसी संगतराश का था
वो जिसकी मीनारोँ पर उसकी उंगलियोँ के लम्स थे
वो जिसकी गुम्बदोँ पर जमी गर्द उसकी साँसोँ से उड़ी थी
वो जिसके चबूतरोँ ने उसके पसीने से ग़ुस्ल किया था
वो जिसे कहीँ समन की घनी छाँव नहीँ मिली थी
वो जिसकी शामेँ साल-हा-साल वहीँ ढ़लीँ थीँ
वो जिसकी उँगलियोँ मेँ गुल-ए-संग तराशने मेँ काँटे चुभे थे
वो जिसकी मेहनत के नक़्श पत्थरोँ पर खुदे थे
वो बता रही थी जिसकी हर डूबती नफ़स
कि बादशाह ने चाहा मिले उसे उम्र भर का कफ़स
कि वहाँ जहाँ इक परीजमाल शहजादी ख़ामोशी की कब्र मेँ सो रही थी
सुना है वहीँ कहीँ क़ायनात उसकी कटी उँगलियोँ पर चुपचाप रो रही थी......