चाँदनी रातोँ के हसीन हल्के उजालोँ में
उसने देखा था आवाज़ोँ को गली के मोड़ से जाते हुए
तब से सन्नाटा सा पसरा है शहर मेँ
उसने बहुत चाहा कि जाने वालोँ का तआकुब हो
बड़ी तफ़्तीशेँ हुईँ
बड़ी तहरीरेँ हुईँ
उसने देखा था आवाज़ोँ को गली के मोड़ से जाते हुए
तब से सन्नाटा सा पसरा है शहर मेँ
उसने बहुत चाहा कि जाने वालोँ का तआकुब हो
बड़ी तफ़्तीशेँ हुईँ
बड़ी तहरीरेँ हुईँ
पर बयान दर्ज हो न सका उसका
कि....
ज़बाँ ख़ामुशी है उसकी
कि....
ज़बाँ ख़ामुशी है उसकी