Wednesday, August 1, 2012

ज़बाँ ख़ामुशी है उसकी

चाँदनी रातोँ के हसीन हल्के उजालोँ में
उसने देखा था आवाज़ोँ को गली के मोड़ से जाते हुए
तब से सन्नाटा सा पसरा है शहर मेँ
उसने बहुत चाहा कि जाने वालोँ का तआकुब हो
बड़ी तफ़्तीशेँ हुईँ
बड़ी तहरीरेँ हुईँ
पर बयान दर्ज हो न सका उसका
कि....
ज़बाँ ख़ामुशी है उसकी

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