Wednesday, September 12, 2012

इस दिल की नगरी मेँ

इस दिल की नगरी मेँ हमने कैसे-कैसे काशाने बनाये
कुछ वक़्त की गर्द मेँ डूबे,कुछ तोड़े ख़ुद और बहाने बनाये

आसमाँ तो तमाम है उड़ने के वास्ते खुला हुआ
वापसी को फिर भी हमने दरख़्तोँ पै आशियाने बनाये

हाल-ए-अहबाब यूँ निभाया समंदर से हमने
तूफ़ानोँ मेँ भी साहिल पै घरोँदे बनाये

सब रौशनी ले गया अपने कारवाँ के साथ अमीर-ए-कारवाँ
हमने उजाले मेँ सितारोँ के अपने रास्ते बनाये

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