Wednesday, October 31, 2012

साहिब.... ये तमन्नाओँ का शहर है

रंज बिकता है यहाँ
तो शादमानी भी
ख़्वाब बिकता है यहाँ
तो निगहबानी भी
ज़मीँ बिकती है यहाँ
तो धूप आसमानी भी
ख़ार बिकता है यहाँ
तो रात की रानी भी
क़रार बिकता है यहाँ
तो बेक़रारी भी

इंसाँ बिकता है यहाँ
तो ख़ुदा मजहबी भी

साहिब....
ये तमन्नाओँ का शहर है
गर चुका सको दाम तो जो जी चाहे खरीद लो

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