कोई खुशबू ना बदन ना कोई साया था
वो जो खाब था पैराहन पहन के आया था
धुआँ ना धुंध ना अब्र का टुकडा कोई
कल की रात चाँद आँख बंद करके आया था
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आहटेँ लाशक्ल ही हसीन हैँ
हर आहट गर शक्ल मेँ तब्दील हो
तो तेरे इंतज़ार मेँ क्या बात रह जाये
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धूप मेँ पिघल जाती हैँ आरजुऐँ
छाँव के लिये घर मेँ दरख़्त रखना
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चाँद, सितारे, आफ़ताब क्या भरोसा कब बुझ जायेँ
उजाले के लिये घर मेँ तुम एक शम्मा जलती रखना
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न हसीन कोहसारोँ से
न खूबसूरत आबशारोँ से
ये रात बदलती है करवटेँ
आपकी आँख के इशारोँ से
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सुना था रात के उस मोड़ पर बैठ कर चाँद बरसोँ बरस ख़ाब बेचता था
वफ़ा,रंज ओ गम,वस्ल-ओ- जुदाई बेचता था
सुना है रात के उस मोड़ पर अब एक टूटा मकान है
उजड़ा दयार है वहाँ, जहाँ कभी चाँद रहा करता था
सुना है ये भी कि बड़ी मुफ़लिसी मेँ वक़्त कटा था उसका
कि सितारोँ की ईटोँ पर टूटा पलंग टिका था उसका
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चेहरा ज़हीन रखना लब पै गुलाब रखना
पलकोँ से मिलते हैँ ख़ाब कितने सबका हिसाब रखना
खुले तो आसपास शुआओँ से बिखर गये
एक सदी से जो बंद कर रखे थे खतों में अर्मान आपने
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सफेद कैनवास पर रात सिर्फ आपके लबोँ के निशान थे
सुबह तलक सारी कायनात ही कैनवास पर आ गयी
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इक बेलिबास सी आरज़ू दर्द लपेटे फिरती है
शब भर जला सितारोँ का शहर
रात अब ख़ाक समेटे फिरती है
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उससे न गिला करो न कोई शिकवा रखो
वो खुदा है उसे सिर्फ खुदा रखो
मत मिलाओ उसे इंसाँ मेँ उसमे मिलावट आ जायेगी
वो अभी साफ़ है उसे साफ़ ही रखो
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हर रंजिश निगाह की धूप सी
हर आँसू निगाह के सुकून सा
Anagh
ReplyDeletePls increase d font size, nt able to read
Naaz