ज़िक्र उनका यहाँ गुनाह सा है
Tuesday, May 31, 2011
मैं जान पाऊं तुम्हें
देखा सुना सा कुछ भी नहीं
यहाँ सब का ग़म अपना निज़ी हुआ करता है
मैं जान पाऊं तुम्हें आखिर तक
या तुम जान सको मुझको
ये तो मुमकिन ही नहीं है
यहाँ तो दरमियाँ खुदाओं के भी
इक पर्दा सा हुआ करता है
1 comment:
Mridula Ujjwal
June 9, 2011 at 3:41 AM
यहाँ तो दरमियाँ खुदाओं के भी
इक पर्दा सा हुआ करता है
bahut khoob
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यहाँ तो दरमियाँ खुदाओं के भी
ReplyDeleteइक पर्दा सा हुआ करता है
bahut khoob