इस रूह को खलिश सी होती है
लो हम जिस्म उतारे देते हैं
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मेरी बेवफाई पै तंज न कीजे
ज़हन-ओ-दिल की मसाइल है
मेरी जुदाई पै रंज न कीजे
दहर-ओ-दस्तूर की मसाइल है
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हर रंजिश निगाह की धूप सी
हर आँसू निगाह के सुकून सा
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ग़ज़ल की तरतीब बड़ी हसीन होती है
खुदा रहे जब मस्जिद तभी ज़हीन होती है
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चहेरों के आइनों की लिखावट बहुत ज़हीन थी
वो रात थी खवाब की इसीलिए तो हसीन थी
वो रात थी खवाब की इसीलिए तो हसीन थी
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चेहरा ज़हीन रखना, लब पै गुलाब रखना
पलकों से मिलते है खवाब कितने, सबका हिसाब रखना
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