Monday, May 9, 2011

चंद शेर

                                                                  
इस रूह को खलिश सी होती है 
लो हम जिस्म उतारे देते हैं
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मेरी बेवफाई पै तंज न कीजे 
ज़हन-ओ-दिल की मसाइल है 

मेरी जुदाई पै रंज न कीजे
दहर-ओ-दस्तूर की मसाइल है 
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हर रंजिश निगाह की धूप सी
हर आँसू निगाह के सुकून सा
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ग़ज़ल की तरतीब बड़ी हसीन होती है
खुदा रहे जब मस्जिद तभी ज़हीन होती है 
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चहेरों के आइनों की लिखावट बहुत ज़हीन थी
 वो रात थी खवाब की इसीलिए तो हसीन थी 
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चेहरा ज़हीन रखना, लब पै गुलाब रखना 
पलकों से मिलते है खवाब कितने, सबका हिसाब रखना 
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