ज़िक्र उनका यहाँ गुनाह सा है
Thursday, May 12, 2011
ये तरतीब पसंद आये तो कहिये
इन अंधेरों के हसीं अफ़साने
उजालों की सियाही से लिख रहा हूँ
जुगनूओं कि इक सफ़ह से
बादाहाखाना रौशन कर रहा हूँ
ये तरतीब पसंद आये तो कहिये
अगले जुमे नए ख्वाब के साथ आने का अहद कर रहा हूँ
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