ज़िक्र उनका यहाँ गुनाह सा है
Saturday, May 7, 2011
आलम-ए-हिज्र औ तन्हाई का मौसम
आलम-ए-हिज्र औ तन्हाई का मौसम
उस पर से ये वक़्त था ठहरा
पलकों पर भी नहीं रुक सकता था
उनका वो गम था बड़ा गहरा
चाह के भी तारे न चमक पाए
किस जोर से था रात का पहरा
आगोश-ए- मुब्ब्हत में मुश्किल है बसर करना
खिलते हुए फूलो में दीखता नहीं सहरा
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