गर कुबूल हो जाये ये दुआ भी
जान लूँ हस्ती है कहीं तेरी खुदा भी
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न इश्क उन्हें ही था, न इश्क हमें ही था
ये सादा सा फरेब मगर साथ सालों रहा
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इस आँख के दरिया में डूब के देखो
इक धार सी सीधी जाती है दिल को
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ये स्याह सफ़ेद से रात दिन मुझे
दो हिस्सों में तकसीम दिए देते है
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इस शमा को दलील-ए-सहर न समझना
धुंए में आग भी होती है, बस धुँआ न समझना
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