वो तेरी चाहत, तेरा वस्ल, कुर्ब तेरा
इस फ़रारी में मेरा सर धुनता है
करेगा इक रोज़ ये चाँद भी ख़ुदकुशी
जो आज आसमाँ पर बैठ कर ख्वाब बुनता है
सब निगल जायेगा साहिलों से अबके
कोई इस समन्दर का शोर सुनता है
समझता हूँ सिर्फ उसे मैं, कि ग़म या कि वो ख़ुदा
जो गली के मोड़ पर बैठा फ़कीर गुनता है
वो तेरी चाहत, तेरा वस्ल, कुर्ब तेरा
इस फ़रारी में मेरा सर धुनता है
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