Monday, May 9, 2011

कांच के नाज़ुक ख्वाब (नज़्म)

रात जब तुम सो रही थीं, एक कांच का ख्वाब पलकों से फिसल गया
हथेलियों पै थाम लिया मैंने , टूट जाता तो तुम्हें तकलीफ होती 
एक गुलाब, एक कैनवास, पेंटिंग ब्रुश, हरे रंग की आधी खाली शीशी, बैंगनी रंग की बन्द डिब्बी, 
एक दुपट्टा, कुछ चूड़ियाँ, और चाय का एक ग्लास जिससे मेरी फोटो दबा रखी थी 
उफ़! क्या क्या समेट के रखती हो ख्वाब में
गर फर्श पै गिर कर बिखर जाता, तो सुबह सब बीनने में दिक्कत होती तुम्हें
कांच के नाज़ुक ख्वाब पलकों पर टांग कर मत सोया करो गिरने का डर रहता है 
 







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